Monday, June 28, 2010

देश को विश्व सिरमोर्य बनने से रोकने षड्यंत्र - जातिवादी जनगणना

जन-गणना में जाति और मज़हब को जोड़ने का काम अंग्रेज सरकार ने शुरू किया था ताकि 1857 में पैदा हुई अपूर्व राष्ट्रीय एकता को भंग किया जा सके| इस भारत-विरोधी षडयंत्र् में अंग्रेज काफी हद तक सफल हुए| 1947 में मज़हबी राजनीति के कारण भारत का विभाजन हुआ और उसके बाद भारतीय समाज में जाति के तत्व का राजनीतिकरण हो गया|
इसके बाद की जनगणना में पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भी इसी जातिवादी जनगणना का विरोध तब की केबिनेट में किया था और तब से अब तक ऐसी बेहूदा स्वार्थी बाते देश में नहीं हुई, पूर्व प्रधान मंत्री विस्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन लागु कर जातिवादी राजनीति को हवा दी थी और उस वक्त की आग अब तक लगी है हजारो युवायो की जिंदगी समाप्त हो गयी लाखो का करियर बर्बाद हो गया देश में योग्यता की पूछ कम होती गयी १० - २० % अंक पाकर इंजीनियर - डाक्टर बनने लगे है जिनसे खुद ये तथा -कथित नेता स्वयं अपना मकान बनवाना या इलाज करवाना नहीं चाहते वो इसके लिए विदेशो पर निर्भर हो जाते है और शेने -शेने देश गर्त में जा रहा है प्रतिभाये पलायन कर रही है ! देश की ये हालत सिर्फ कुछ स्वार्थी नेता अपने तुक्छ स्वार्थ के लिए कर रहे है यदि इन्हे यही मंजूर है तो वे एक और कानून बनाये की जो जिस जिस जाति का है उसका इलाज उसी जाति का डॉक्टर करे !
,इन बातों से ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी ने इनकी आखो में पट्टी बांध दी है या कोई और इनकी डोर पकड़ चला रहा है शायद विदेशी ताकते हो जो देश को विश्व सिरमोर्य बनने से रोकने ये षड्यंत्र कर रही है
हमारे संविधान-निर्माताओं ने इस खतरे को पहचाना था , और इसीलिए उन्होंने भारत को जातिविहीन और वर्गविहीन राष्ट्र बनाने की घोषणा की थी 1871 में अंग्रेज द्वारा शुरू की गई जातीय जन-गणना को आज़ाद भारत की किसी भी सरकार द्वारा दुबारा शुरू करना एक धोखा होगाऔर वह भी स्वयं अपने आप से
जातिगत जनगणना जातिवादी राजनीति श को विश्व सिरमोर्य बनने से रोकने षड्यंत्र - जातिवादी जनगणना दे
जन-गणना में जाति और मज़हब को जोड़ने का काम अंग्रेज सरकार ने शुरू किया था ताकि 1857 में पैदा हुई अपूर्व राष्ट्रीय एकता को भंग किया जा सके| इस भारत-विरोधी षडयंत्र् में अंग्रेज काफी हद तक सफल हुए| 1947 में मज़हबी राजनीति के कारण भारत का विभाजन हुआ और उसके बाद भारतीय समाज में जाति के तत्व का राजनीतिकरण हो गया|
इसके बाद की जनगणना में पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भी इसी जातिवादी जनगणना का विरोध तब की केबिनेट में किया था और तब से अब तक ऐसी बेहूदा स्वार्थी बाते देश में नहीं हुई, पूर्व प्रधान मंत्री विस्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन लागु कर जातिवादी राजनीति को हवा दी थी और उस वक्त की आग अब तक लगी है हजारो युवायो की जिंदगी समाप्त हो गयी लाखो का करियर बर्बाद हो गया देश में योग्यता की पूछ कम होती गयी १० - २० % अंक पाकर इंजीनियर - डाक्टर बनने लगे है जिनसे खुद ये तथा -कथित नेता स्वयं अपना मकान बनवाना या इलाज करवाना नहीं चाहते वो इसके लिए विदेशो पर निर्भर हो जाते है और शेने -शेने देश गर्त में जा रहा है प्रतिभाये पलायन कर रही है ! देश की ये हालत सिर्फ कुछ स्वार्थी नेता अपने तुक्छ स्वार्थ के लिए कर रहे है यदि इन्हे यही मंजूर है तो वे एक और कानून बनाये की जो जिस जिस जाति का है उसका इलाज उसी जाति का डॉक्टर करे !
,इन बातों से ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी ने इनकी आखो में पट्टी बांध दी है या कोई और इनकी डोर पकड़ चला रहा है शायद विदेशी ताकते हो जो देश को विश्व सिरमोर्य बनने से रोकने ये षड्यंत्र कर रही है
हमारे संविधान-निर्माताओं ने इस खतरे को पहचाना था , और इसीलिए उन्होंने भारत को जातिविहीन और वर्गविहीन राष्ट्र बनाने की घोषणा की थी 1871 में अंग्रेज द्वारा शुरू की गई जातीय जन-गणना को आज़ाद भारत की किसी भी सरकार द्वारा दुबारा शुरू करना एक धोखा होगाऔर वह भी स्वयं अपने आप से

3 comments:

माधव( Madhav) said...

बहुत सही कहा आपने

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जातिवादी जनगणना होनी चाहिए,क्योंकि कुछ जातियाँ अपनी अनु्मानित अधिकता दिखाकर वोटों की राजनीति का सिरमौर बनी हुयी हैं। इससे उनकी कलई खुलेगी और वास्तविक आंकड़े सामने आएंगे।

इस विषय पर शीघ्र ही लिखुगा कि जातिगत गणना क्यों आवश्यक है?

अच्छी पोस्ट

आभार

Udan Tashtari said...

विचारणीय आलेख...ललित भाई के पक्ष का भी इन्तजार रहेगा.

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