Monday, October 4, 2010

कार्यकर्तायो को अपना चमचा बनाने के चलते कांग्रेस का यह परिणाम

भटगांव उपचुनाव के नतीजे को लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के अपने-अपने दावे थे । इस सीट से श्रीमती रजनी त्रिपाठी ने 35 हजार से भी ज्यादा वोटों से चुनाव जीत लिया यह चुनाव से प्रत्याशी की लोकप्रियता, पार्टी के कार्यों की गणना या अन्य किसी भी तरह के कारणों से सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। फिर भी, चुनाव के दौरान प्रचार, नेताओं के दौरे, भाषण और मुद्दों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा का पलड़ा भारी था इसलिए इस दफा बाजी उसके हाथों में होगी।अब अगर चुनाव के दौरान के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो एक बार फिर भाजपा सांसद दिलीप सिंह जूदेव भारी पडे। श्री जूदेव ने भावनात्मक रूप से मतदाताओं से अपील की कि विरोधी पक्ष के उम्मीदवार उनके चचेरे भाई हैं लेकिन वे इस युद्ध में सत्य के साथ हैं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं के बलबूते प्रचार किया तो चुनाव मैनेंजमेंट में माहिर बृजमोहन अग्रवाल के हाथों संचालन की कमान रही है। तेजतर्रार आदिवासी मंत्री रामविचार नेताम,सांसद मुरारी लाल सिंह की मेहनत रंग लायी सबसे बड़ी बात एक बार फिर बीजेपी ने राजमहल के खिलाफ आम जनता के प्रतिनिधित्व का मुद्दा मतदाताओं के समक्ष रखा ।
दूसरी ओर कांग्रेस ने भी सभी विधायकों को मैदान में उतारकर वैशाली नगर की रणनीति अपनाई। लेकिन उसके स्टार प्रचारक पूर्व मुख्यमंत्री के भाषण को दूसरे नजरिए से देखा गया। श्री जोगी ने ताल ठोंकी है कि चुनाव जीतने के बाद भाजपा सरकार को २०१० में ही उखाढ़ फेकेंगे । इस पर कांग्रेस में ही सवाल उठे ,लोकतंात्रिक व्यवस्था के खिलाफ आचरण के कारण श्री जोगी पूर्व में भी आलोचना के शिकार हो चुके हैं और पार्टी से निलंबित भी ।
एन सब बातो का राजनेतिक अध्ययन करने वाले जानकर वरिष्ट पत्रकार श्री प्रकाश होता ने आज एक स्थानीय टी. वी. चेनल में कहा की यह कांग्रेस के बढे नेतायो की हार है , कांग्रेस ने कार्यकर्तायो की पूछने वाला कोई नहीं पुरे चुनाव में पैसे की कमी का रोना रहा उन्होंने बढे नेतायो और कर्कार्तायो के रिश्ते में दूरी को भी बताया , कुल मिला कर कहा जाये हो यह चुनाव में नेतायो ने कार्यकर्तायोसे कई रायशुमारी नहीं की और लम्बे समय से नेता कार्यकर्तायो से दूर होते जा रहे है अभी -अभी निपटे राज्य सभा के चुनाव में ये नेता दो दिनों तक डेरा डाले थे ,जबकि यहा विधायक ही वोटर थे और हार की कोई सम्भावना ही नहीं थी ,इसी के उलटे हाई कमान यह पता कर ले इन्ही नेतायो ने नगर निगम , जिला पंचायत ,सहकारिता के चुनाव में क्या किया गया , पेसो की तो बात दूर, कार्यकर्तायो से कार्यकर्तायो को लड़ाने में कोई कसार नहीं छोड़ी और शायद ये छोटा चुनाव किसी भी पार्टी की नीव है, यही सब अपना तगमा लगाने के लिए नियम कायदों अनुभव निष्ठा को दर किनार रख संघठन चुनाव में हुआ कार्यकर्तायो के को अपना चमचा बनाने ही होड़ के चलते कांग्रेस का यह परिणाम आया है और यदि हाई कमान सीधे सामने नहीं आया तो कांग्रेस का गढ़ कार्यकर्तायो की हताशा से भाजपा का गढ़ बन ही जायेगा

2 comments:

sanjeet said...

Sanjeet Tripathi said...
जिस सन्दर्भ में आपने कहा है कि आपके साथ चले ९० में से इतने इतने यहाँ यहाँ निर्वाचित हुए हैं, इसकी सत्यता को देखकर अगर हर एनएसयूआई या युकां कार्यकर्ता इसी बात को आदर्श मानकर चले और ऐसे ही पदयात्रा करे तो निश्चित तौर पर आम जनता की समस्याएं कम होती चली जायेंगी लेकिन दिक्कत यही हैं ना कि यहाँ हर निर्वाचित अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारी चुने जाने के बाद अपना घर भरने की पहले सोचते हैं, चाहे यहाँ का ठेका या फिर वहां का ठेका. बॉस जीतने के बाद कौन याद रखता है मतदाताओं को, चाहो तो मेरे ही मोहल्ले के योगेश तिवारी से पूछ लो, नाम ही काफी है कि ये सज्जन कौन हैं , क्या किया इन्होने जब तक ये पद पर रहे, बस ये जरुर किया कि ठेका लिया अपने नाम से, अपने छोटे वाले भाई के नाम से क्योंकि बड़े भाई आलरेडी एक कालेज के प्रिंसिपल हैं इसलिए, सो राजनीति ऐसे ही चलती है सर कि अपने नाम से ना सही, घरवाले जिंदाबाद. तो क्या राहुल गांधी का सपना यही है ?

शरद कोकास said...

बढ़िया विश्लेषण है ।

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