Sunday, November 1, 2009

मेरे प्रदेश छत्तीसगढ़ का 9वां जन्म दिन

छत्तीसगढ़ राज्य अपने गठन का 9वां स्थापना दिवस मनाने को तैयार हैं । राज्य निर्माण जनता की मांग पर जनता के लिए जनता के द्वारा चुनी हुई सरकारों ने किया है । एक तरफ मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस के सरकार ने लगातार न चाहते हुए भी राज्य स्थापना के समर्थन में प्रस्ताव पारित किये दूसरी ओर केन्द्र की अटल बिहारी बाजपेयी भाजपा समर्पित केन्द्र सरकार ने भी न चाहते हुए लगातार अपने बयानों में फंसकर राज्य निर्माण पर अपनी मुंहर लगाई है । प्रदेश की 2 करोड़ जनता को मैं बधाई देना चाहता हूं ।

छत्तीसगढ़ का निर्माण तो छत्तीसगढ़ के भले के लिए हुआ । छत्तीसगढ़ के पांव अभी पालने में ही कहे जायेंगे । राज्य शैशव काल में है, उन्नतियों की दिशा में अग्रसर है । मध्यप्रदेश से विमुक्त होकर कम से कम यह कहने का अवसर तो नहीं कि हमारी गाढ़ी कमाई दूसरे खा रहे हैं लेकिन वाह रे राजनीति इसे भी बाहरी और भीतरी का खेल बताकर जनता को इसी में उलझा कर रखना चाहती है । 6सौ करोड़ से शुरू होने वाला राज्य 6 हजार करोड़ के पार निकल चुका है । जहाँ एक जमाने में पुरे छत्तीसगढ़ अंचल को हजार बारह सौ बिजली पंपों का स्वीकृति अनुदान मिलता था वहीं अब किसानों के लिए अनगिनत सुविधाएं उपलब्ध है । प्रदेश का मजदूर मजदूरी के लिए दूसरों की बाट जोहता था अब विभिन्न समूहों और सहकारी समितियों के माध्यम से उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में खदानों की कमान है । प्रदेश का शिक्षित, बेरोजगार शिक्षा प्राप्त कर दर दर ठोंकरे खाता था आज उसके सामने भी अपार संभावनाएं हैं । विद्यार्थी एक -एक स्कूलों के लिए मांग करते थे मुझे याद है औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था आई.टी.आई. रायपुर के सात व्यवसायों (ट्रेडों ) को स्थानाभाव के चलते भिलाई आई.टी.आई. में रखा गया था उनकी वापसी और रायपुर आई.टी.आई. के भवन व नया व्यवसायों को प्रारंभ कराने के लिए हम तत्कालीन छात्रों ने तत्समय 12 दिनों तक लंबी भूख हड़ताल की । तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के आश्वासन पर भी हड़ताल वापस नहीं हुई । लिखित समझौता संचालक रोजगार एवं प्रशिक्षण, छात्र संघ एवं जिला प्रशासन के मध्य व तब यह हड़ताल समप्त हुई जबकि दूसरे दिन ही रायपुर बंद की नौबत आ चुकी थी । इसके बाद रायपुर में बारह नये व्यवसाय 1986 में प्रारंभ किये जा सकें । वर्तमान समय में आई.टी.आई. की बात ही छोड़ दें । अभियांत्रिकी महाविद्यालय (इंजीनियरिंग कालेज), डेंटल कालेज, मेडिकल कालेज, यहां तक के पांच -पांच विश्वविद्यालय इस प्रदेश में निर्मित कर दिये गये हैं और देश का विद्यार्थी हिदायतुल्ला लॉ विश्वविद्यालय जैसे विद्यालयों में आकर अध्ययन कर रहा है ।

इन तमाम सुविधाओं की नींव प्रथम मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी के शासन काल में रख दी गई । उन्होंने अपने सहयोगियों की इच्छाओं की तिलांजलि देकर इस राज्य निर्माण के लिए वित्तीय अनुशासन और छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के गठन के लिए लड़ाई प्रारंभ की । उन्हें राजनैतिक दल और राजनेता कुछ भी कहें लेकिन शिक्षा के लिए उनके द्वारा शिक्षा की मंडी बनाने की दिशा में जो काम अशासकीय वि.वि. के रूप में प्रारंभ हुए उन्हें यदि देश के तथाकथित बुध्दिजीवी एवं अपने स्वार्थों की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने वाले तत्कालीन उच्च पदों पर बैठे अधिकारी समझ पाते तो शायद आज छत्तीसगढ़ और ऊंचाई पर होता । इसी प्रकार प्रदेश के जन भावनाओं को उनकी तकलीफों को निचले स्तर पर देखकर समझने वाले श्री जोगी ने त्रिवर्षीय चिकित्सा पाठयक्रम जो प्रारंभ किया जिसकी मान्यता भी अभी विगत माह पूर्व प्रदेश की सरकार ने पुन: दी । इन बातों को यदि राजनैतिक नजरिये और व्यक्तिगत स्वार्थ से हटकर देखा जाय तो मैं इन्हें मिल के पत्थर के रूप में देखता हूं ।

2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के निर्वाचन के बाद प्रदेश में डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री बनाये गये । सीधे सरल व निश्चल स्वभाव के पेशे से डॉ. रमन सिंह ने बहुत ही धीरे धीरे प्रदेश को विकास की राह पर आगे बढ़ाया और मैं ऐसा मानता हूं कि पिछले 5 वर्ष के कार्यकाल में कुछ एक योजनाओं को छोड़कर बाकी सभी प्रमुख योजनाएं प्रदेश के पूर्ववर्ती शासन काल में रखी गयी थी । जिसके चलते आज प्रदेश एक स्थान पर खड़ा दिखाई पड़ता है लेकिन बहुत सी समस्याएं दूर हुई हैं । तो आर्थिक प्रवाह के चलते जो विषमताएं पैदा हुई और उसके पश्चात औद्योगिक क्रांति, कृषि क्रांति, ऊर्जा क्रांति, नक्सलवाद के बाद विश्व में जो आर्थिक मंदी का दौर अब प्रारंभ हुआ उसमें स्थितियां विकट होती जा रही हैं । राज्य निर्माण के इस अवसर पर इन विसंगतियों को समझ कर दूर करने का हमें अवसर है । एक ओर जहां नक्सलवाद अपनी चरण सीमा पर पहुंच कर केन्द्र सरकार और अन्य राज्यों के सामूहिक अभियान से खात्मे की ओर नजर आता है । वहीं प्रदेश सरकार की महती योजना केन्द्र सरकार के समर्थन से धान की खरीदी, उपजों के उचित मूल्य, गरीबों को एक और दो रुपये किलो चांवल, गेहूं, नमक जैसी सुविधाओं के चलते अब एक विपन्नता की दूसरी कड़ी सामने आ रही है । ऐसा लगता है कि इस प्रदेश में श्रम का संकट पैदा होने वाला है । जो आगे चलकर इस प्रदेश की शांत और निश्चल गांव से प्रेम करने वाली गरीब जनता के अमन चैन को न असर करें । वह नून और भासी भात खाकर सुख की बंशी बजाने वाला है । श्रम संकट के चलते आज प्रदेश में बड़े बड़े उद्योगों और ठेकों में उड़ीसा, दक्षिण प्रान्त, बंगाल, उत्तरप्रदेश , बिहार, झारखण्ड के राज्यों से कथित रूप से स्वभाव से तेज व बिरला श्रम यहां अप्रवासी नागरिक के रूप में आ रहे हैं । उनकी पहचान कर उन्हें कार्य उपरान्त यथा संभव व्यवस्थित करने का बीड़ा प्रशासन को अपने कंधों पर लेना चाहिए ।

कुल मिलाकर राज्य गठन के शैशव काल के बाद राज्य का विकास जहां संतोषप्रद है वहीं अप्रवासी श्रम से अशांति का खतरा नक्सलवाल के बाद सामने दिखाई पड़ रहा है और आर्थिक मंदी के दौर में रुपयों का प्रवाह कम होने के चलते जो विकास कार्यों में रूकावट और जनता को बिना श्रम के राजनैतिक लाभ के लिए दिये जाने वाला प्रतिफल एक नई गंभीर समस्या की ओर संकेत दे रहा है ।

5 comments:

समयचक्र said...

स्थापना दिवस पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये

36solutions said...

सार्थक चिंतन.


शुभकामनांए.

शरद कोकास said...

गाडा गाडा बधाई ।

Anil Pusadkar said...

बहुत बहुत बधाई।अजय तुमने तो बताया नही लेकिन देखों हमने तुम्हे यंहा भी खोज लिया।आज खुशी का दिन है इसलिये सिर्फ़ इतना कहूंगा कि अच्छा लिखा।बाकी किसी दिन आमने सामने बात करेंगे।लिखते रहो,अनंत शुभकामनायें।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

badhai- dil ki bat- sarthak chintan

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