Saturday, October 24, 2009

बीबीसी के मेरे मित्र विनोद वर्मा की दुष्कर यात्रा

नक्सलियो से मुलाकात के लिए दुष्कर यात्रा करने वाले मेरे दूसरे पत्रकार मित्र की यह यात्रा शायद एक दशक के अंतराल में हुई है । भाई रुचिर गर्ग देशबंधु रायपुर के सिटी प्रमुख थे । विनोद वर्मा प्रांतीय प्रमुख और अब विनोद है, भारत के बीबीसी हिन्दी के प्रमुख और रुचिर हैं सहारा टीवी छत्तीसगढ़ के प्रमुख दोनों ने काम प्रारंभ से ही दुष्कर करते थे तो उनकी यात्राएं भी दुष्कर ही होगी ।

दोनों ने एक दशक में नक्सली समस्या को नजदीक से देखकर, सुनकर लिखा है । यात्राओं में अंतर यह है कि रुचिर ने जब यात्रा की तब यह आंदोलन रचनात्मक दिशा में था और अब विनोद की यात्रा के वक्त

यहां आंदोलन पैसा उगाने की मशीन बन गया । जनता को दुख देने का मर्ज बन गया । और करते करते अंतिम पड़ाव पर आ गया है ।

भाई विनोद को नक्सलियों ने खाने मेंचांवल और आम की गुठलियां दी तो वे खा न सके । जबकि उड़ीसा का यह आम खाना है । नक्सली पंडा जी के नेतृत्व में चल रहा यह आंदोलन और उसके इर्द गिर्द पांच नवयुवतियां और एक तेरह -चौदह साल की बच्ची को देख हतप्रभ रह गये । एक ऐसे नक्सली से मुलाकात के लिए विनोद की यात्रा कि बड़ी बड़ी घटनाओं मे शामिल रहा के हाथों उनके साथ सोयाबीन की बड़ी खाकर उन्हें संतुष्ट होना पड़ा ।

सांप और मच्छरों से आमतौर पर घबराने वाले विनोद को जंगल में इनकी याद से नींद भी नहीं आई और अपनी कच्ची तैयारी पर उन्हें अफसोस होना भी लाजिमी है ।

पिछले महीनों पूर्व जब मैं दिल्ली में मित्र विनोद से मिलने गया था तो वे दिल्ली के कनाट पैलेस स्थित दफ्तर में रात की पारी में नौकरी कर रहे थे । एक चौकीदार चपरासी और वे एक बड़े विशाल हाल में जहां दर्जनों टेलीविजन लगी थी में अकेले बैठे हुए काम कर रहे थे ।

यहां तक उन्होंने बताया कि आज रात यहां से लंदन कार्यालय के कार्यकालिन संपादन अकेले करेंगे । अपने महत्ती जिम्मेदारी और जिम्मेदार स्वभाव के विनोद जी की यात्रा के सुखद परिणाम आने वालों दिनों में सामने आयेंगे । जब आपरेशन ग्रीन हंट सफल होकर देश नक्सली समस्या से उन्मुक्त होगा ।

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