छत्तीसगढ़ विधानसभा के उपचुनाव में एक लंबे समय के बाद कांग्रेस ने जीत दर्ज की , कांग्रेस की जीत को स्थानीय परिस्थितियों और चुनाव में राष्ट्रवाद की जीत कहा जायेगा । विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भजनसिंह निरंकारी को अपना प्रत्याषी घोशित किया,तो भाजपा ने अपने ही पार्टी केपूर्व सांसद वर्तमान निश्कासित नेता ताराचंद साहू के प्रभाव को महसूस करते हुए साहूवाद पर अपनी मुहर लगाई और जागेश्वर साहू को उम्मीदवार बनाया । ताराचंद साहू की क्षेत्रीयपार्टी ने क्षेत्रीयता का लाभ उठाने के लिए रश्मि देशलहरा सतनामी समाज को उम्मीदवारी सौंपी।
चुनाव के प्रारंभ में भारतीय जनता पार्टी के विचारों में साहूवाद सर्वोपरि था जिसे ध्यान में रखकर रणनीतिकारों ने कांग्रेस के नेताओं से भी समर्थन प्राप्ति की आशा में साम, दाम, दंड भेद की नीति अपनाते हुए ताराचंदसाहू की पार्टी से सतनामी समाज का उम्मीदवार कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाने के लिए तय करवाने में सफलता प्राप्त कर ली जिसे बीजेपी की पहली जीत के रूप में देखा जा रहा था इसके सार्थक परिणाम भी सामने आये जिसके रूप में रष्मि देषलहरा ने 11 हजार से ज्यादा वोट प्राप्त करने में सफलता पाई जिसे तथाकथित कांग्रेस का वोट बैंक मानकर कांग्रेस के कतिपय नेता पार्टी के अंदर अपनी राजनीति चमकाते हैं।
कांग्रेस के भजनसिंह निरंकारी ने 47 हजार से ज्यादा वोट प्राप्त कर 1200 मतों से विजय प्राप्त की । इस अंतर में क्षेत्रीय मतों का विभाजन होकर रश्मि देशलहरा का 11 हजार वोट पाना अपने आप में मायने रखता है लेकिन क्षेत्रीयता के आगे राश्ट्रवाद की जीत हुई है ।
इन चुनावों के प्राथमिक विश्लेषण को देखें तो यह विभाजन छत्तीसगढ़ के लिए खतरनाक खेल की षुरूवात है । चूंकि मतों का अन्तर बहुत ही कम होने के कारण यह मतों की लड़ाई गंभीर हो सकती है। वैसे प्रदेश के अंदर कांग्रेस और भाजपा के मतों का अन्तर भी मात्र एक-दो प्रतिषत रह गया है, ऐसे में यह एक गलाकाट स्पर्धा भी हो सकती है । कुल मिलाकर यह देखा जाय तो जातिवाद की लड़ाई पर नेताओं के स्वार्थ हावी हो रहे हैं । गत लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां तथाकथित बाहरी कही जाने वाली सरोज पांडे को उम्मीदवार बनाया था।
इनके समक्ष कांग्रेस ने तथाकथित स्थानीय वाद के प्रतीक स्वरूप प्रदीप चौबे को उम्मीदवार बनाया था और स्थानीय उम्मीदवार के तौर पर तीसरे दल के ताराचंद साहू उम्मीदवार थे, इन स्थानीय मतों के विभाजन से भाजपा प्रत्याषी सरोज पांडे विजयी रहीं । इसके विपरीत फार्मूले पर विधानसभा चुनाव में सरोज पांडे के खिलाफ बृजमोहनसिंह दोनों बाहरी प्रत्याषियों केबीच चुनाव हुआ था,कुल मिलाकर यह कहा जाय कि स्थानीय और बाहरी की लड़ाई कोई मायने नहीं रखती , मायने रखते हैं तो स्थानीय चुनावों में समीकरण, परिस्थितियां,राश्ट्रवाद और राश्ट्रप्रेम का झंडा बुलंद रखना ।
Tuesday, November 10, 2009
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1 comment:
श्री भजनसिंह निरंकारी को जीत की बधाई । हर चुनाव का अपना अलग गणित होता है । एक चुनाव मे जो फार्मूला चलता है वह अगले मे नही चलता । जनता का विवेक सर्वोपरि होता है फिर वह पचास प्रतिशत जनता का ही क्यो न हो ।
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