आरक्षण राजनीतिज्ञों के लिए वोटों की राजनीति का एक बड़ा हिस्सा बनता जा रहा है इसलिए रानैतिक दल को इससे कोई पहरेज नहीं की इन आरक्षणों के चलते समाज की स्थिती क्या हो रही है उनके युवा और बेरोजगारों के लिए आरक्षण के क्या मायने हैं उन्हें तो बस वोटों की राजनीति हरा ही हरा नजर आता हैा
अभी कल ही की बात है वोटों की राजनीति में सबसे बड़ा वोट बैंक अल्पसंख्यक मुस्लिमों को है जिसे सारे राजनैतिक दल पाना चाहते हैं। एक आंध्रप्रदेश सरकार सन् 2004 की लड़ाई लड़ते-लड़ते आज तक मुस्लमानों को आरक्षण नहीं दे पाई वहीं बंगाल की सरकार ने सामने मुँह बाय खड़े चुनाव को देखते अपने सभी राजनैतिक मानदंडों को बलाए तार पर रखकर पिछड़े मुस्लिमों को 10 प्रतिशत आरक्षण देना स्वीकार कर लिया।
धर्म की राजनीति से सरोकार न रखने वाला पश्विम बंगाल से कम्यूनिस्ट ग्रुप बंगाल में उखड़े अपने पैरों को पुन: जमाने के लिए धर्म आधारित आरक्षण को मंजुर करने का बहाना संसद में पेश जस्टिस्ट रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों को बना रहा है। वहीं दुसरी ओर इसी मामले में आंध्रप्रदेश की सरकार 2004 से कानूनी लड़ाई में इस आरक्षण को उलझाये रखी हुई है। पर्याप्त सूचनाओं से यह आधार होता है कि आंध्र का मामला संभव तक सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) संवैधानिक बैंच के पास लंबित है।
50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण का प्रावधान न होने के स्पष्ट निर्देश सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पहले ही दिये जा चुके हैं। इसी परिपेक्ष में आंध्र के उच्च न्यायालय ने 7 न्यायधिशों के बैंच में 5 के बहुमत के आधार पर इस आरक्षण को असंविधानिक करार दिया।
लंबी कानूनी अरचनों और आरक्षण से किसी वर्ग के उद्धार न हो सकने को जानने वाले नेता वोटों की राजनीति के चलते मुस्लिम सहित अन्य धार्मिक आधार से जुड़े बड़े समूहों को आरक्षण दिये जाने के हथकंडे को अपनाने से बाज नहीं आ रहें हैं। बंगाल के आरक्षण पर जहां कांग्रेस और तूणमूल कांग्रेस चुप हैं वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इसे घटिया राजनैतिक पैतरे बाजी अल्प संख्यकों का तुष्टी करण करने वाला बताया। आंध्र के मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी मुस्लिमों को 4-5 प्रतिशत आरक्षण देना चाहते, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य गठबंधन के चेयरमेन विमान बोस की घोषणा अनुरोध अनुसार 10 प्रतिशत आरक्षण धार्मिक अल्प संख्यक जो सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं को देने की घोषण करते हैं मुख्यमंत्री इस आरक्षण में वार्षिक आय साढ़े चार लाख रूपये का एक नियम उस पर थोपते हैं। साथ ही इस वर्ग को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया जाना बता कर भारत के विभिन्न राज्यों में नौकरियों और शिक्षा में दिये जा रहे 10 प्रतिशत आरक्षण को लागु करने के बात रहें हैं।
मंडल कमिशन की रिपार्ट और तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की घोषणा पर देश के युवाओं की प्रतिक्रिया और उनके खुन के दाग आज भी भारत की जनता के मन मस्तिषक पर अंकित है। सुप्रीम कोर्ट अब तक इन मामलों पर बहस करते हुए अंतिम निर्णय तक अग्रसर है जिसमें बार-बार यह दृष्टीकोण उजागर हुआ हैं कि आरक्षण की प्रतिक्रिया भारत जैसे देश में समस्त गरिब नागरिकों को मिलनी चाहिए कुल मिताकर यह आरक्षण आर्थिक आधार पर दिये जाने सभी सहमत हैं। लेकिन फिर भी वोटों की राजनीति इसके आढ़े निरंतर आ रही है और आने वाला चाहे पश्चिम बंगाल का चुनाव हो चाहे उसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार का चुनाव हो उन सभी जगह यह पैतरा पार्टीयों को अपने वोटों के खातिर लाभ दिलाने वाला नजर आता है जिस्से ऐसा लगता है कि भारत के युवाओं का भविष्य अभी भी राजनीति अपने पैरो तले कुचलने को तत्पर है।
Tuesday, February 9, 2010
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6 comments:
bat pate ki hai par neta to samjhe ..............
आराक्चन पर चिंता जरुरी है वर्ना देश में अयोग्यता का बोलबाला हो जायेगा
आराक्चन पर चिंता जरुरी है वर्ना देश में अयोग्यता का बोलबाला हो जायेगा
सार्थक चिंतन अजय भैया. धन्यवाद.
अभी तो आग और भडकना बाकी है
bhart yuvayo ke hit me punarvichr karna hoga
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