समाचार है की भारत में एक सांसद की तनख्वाह फिलहाल 16,000 रुपये है. इसके अलावा उन्हें ढेरों मोटे मोटे भत्ते, रियायती पास और अन्य सुविधाएं मिलती है. संसद सत्र में हर दिन सदन में बैठने के लिए उन्हें 1,000 रुपये का भत्ता मिलता है. लेकिन नेताओं को यह कम लग रहा था . पक्ष हो या विपक्ष, इस पर सब एकमत हैं. सचिव स्तर के अधिकारी को हर महीने 80 हजार रुपये वेतन मिलता है.तो एक सांसद को 50,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलना चाहिए. हवाई जहाज से यात्रा के भत्ते और दूसरी सुविधाएं भी दी जानी चाहिए
भारत की संसद के इतिहास में संभवत पहली बार सांसदों के वेतन भत्ते बढाने का प्रस्ताव रोका गया होगा परंपरा रही है की सांसदों ,विधायको के वेतन भत्ते बढाने के प्रस्ताव सदन केवल ओपचारिकता के लिए लाये जाते थे आज जब डॉ मनमोहन सिंह की केबिनेट में यह प्रस्ताव आया तो मंत्रियो के विरोध से इसे रोकना पड़ा है लेकिनसूत्रों के मुताबिक इन मामलों की संवेदनशीलता को देखते हुए कैबिनेट ने वेतन वृद्धि का प्रस्ताव टाल दिया. सरकार को लगा कि इससे उसकी छवि खराब होगी. क्योकि लगातार देश के विचारक इस प्रस्ताव से असहमत थे सभी ने एक स्वर में इसे नाजायज करार दिया ये एक जनसेवक के विपरीत आचरण था
Monday, August 16, 2010
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5 comments:
जन प्रतिनिधियों को भरपूर वेतन मिलना चाहिए-इसे 50हजार के स्थान पर 1,50,000 प्रतिमाह कर दिया जाएं। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में यह एक प्रभावी कदम होगा।
प्रश्न करने के एवज में 5-5 हजार तो लेके बदनाम नहीं होगें।
आप सही कह रहे है भाई साहब लेकिन कुत्ते की पूछ .............. वाली कहावत तो आपने सुनी होगी ........... धन्यवाद उतसाह वर्धन का
वेतन बढाने से यदि इनकी भूख मिटती हो तो अवश्य बढा देने चाहिए। शरद पँवार सरीखों के पास कितना धन है इसकी भी पडताल होनी चाहिए और उसी को वेतन मिलना चाहिए जिसे जरूरत है। एक-एक राजनेता और नौकरशाहों के पास इतनी अकूत सम्पत्ति है कि उसे गिना नहीं जा सकता।
होइहैं सोई जो 'राम' रचि राजा. :)
सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.
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