भारत में भगवान राम के बिना प्रत्येक चर्चा अधूरी मानी जाती है । रामचन्द्र जी के संपूर्ण प्रसंगों में भारत का उल्लेख हर जगह मिलता है । भरतवंश और भारत एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं । रामायण काल के अवशेष आज भी पूरे भारतवर्ष में विराजमान है । इससे छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं है । जहां देश में उ.प्र. और मध्यप्रदेश में चित्रकूट विराजमान है तो छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी चित्रकूट का जल प्रपात उसी कहानी को कहता है । ऐसे ही अध्ययन को एक मुकाम तक पहुंचाते हुए पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के इतिहास वेत्ताओं ने रामचन्द्र जी के वन गमन मार्ग में छत्तीसगढ़ का उल्लेख उनके वर्तमान में पाये जाने वाले शिलालेखों को लेकर एक नवीन वन गमन मार्ग की रचना की है । जिससे आने वाला समय छत्तीसगढ़ को भगवान रामचन्द्रजी से और निकट से जोड़ेगा ।
इसी प्रकार भगवान रामचन्द्र जी के वनवास के दौरान सीता माता की अपहरण से जुड़ी घटना भी एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है । इस घटना पर समाज के वर्तमान परिस्थितियों में उल्लेख करते हुए विभिन्न अवसरों पर इसे उध्दृत कर निर्णय लिये जाते हैं । माता सीता की खोज में भगवान हनुमान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।
भगवान रामचन्द्र जी की मुंदरी (अंगूठी) को लेकर वे जिन स्थानों पर गये उनमें आवर्तन (ब्रिटेन), अश्वक्रांत (यूरोप), रूम पट्च्चर इटाली (रोम), इंद्रुद्वीप व इंद्रद्वीप (इंग्लैण्ड), पशुशील (पुर्तगाल), क्रोंच कमथकामल (जर्मनी), सैनिक कुक्कुट हालैंड (बैल्जियम), अश्वक व आश्वीय (आस्ट्रिया ), प्रलिया कुहक (फ्रांस), तामस (स्पेन), मारक व माठक (डेनमार्क, स्वीडन), तुरष्क (स्कैंडेनेविया), आरण्यक (यूरोपियन हरकी), कानिवाल (केनिवल), बर्बर (बारबेरी), रथक्रांत सूर्यारिका (अफ्रीका), उपद्वीप, वरूण, राक्षसावास, वारिधाम (अफ्रीका के उपद्वीप), विष्णुक्रांत व असेचेनक (एशिया), हैख (साइबेरिया), रूस, शक तुरूष्ट (एशियार्टिक टरकी), महाचीन (चीन), तालतोषक (तिब्बत), पार्वत (टार्टरी), आर्वन (अरब), पारस्य (ईरान), तुखारा (बुखारा), शुद्र पवन व महका (मक्का), पहनव (काबूल), नार्दिनाश कारस्कर (मदीना), गांधार (कंधार), ब्रह्मदेश व ब्र्हमा (बर्मा), अपवाह व अपक्रांत (मस्तक), उपमल्लव (मलेका), सिघलद्वीप , सीलोन (श्रीलंका), स्वर्णभूमि व कुमारद्वीप (अमेरिका), उत्तरकुमार (उत्तरी अमेरिका), दक्षिण कुमार (दक्षिण अमेरिका), रमणक (आस्ट्रेलिया), तूलह (ब्राजील), हिरयपुर (पेरू), दरद (भूटान) प्रमुख रूप से शामिल है ।
पवन सुत हनुमान को स्वामी भक्त के रूप में देखा जाता है और वही वनगमन का मार्ग छत्तीसगढ़ और भारत में भी विभिन्न इतिहास वेत्ताओं के द्वारा ऐतिहासिक शिलालेखों में दर्ज इतिहास को पढ़कर यह प्रमाणित किया जा रहा है कि सीता माता और भगवान राम का वन गमन क्षेत्र कितना विस्तृत और विशाल रहा होगा । इसे उस काल की वैज्ञानिक उपलब्धि का सहज पैमाना बनाया जा सकता है ।
Sunday, February 21, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
is it true info???
Post a Comment