Friday, October 16, 2009

मिठाई की मिठास पर बाजारवाद हावी

छत्तीसगढ़ सहित देश के करीब करीब सभी नगरों में खोवे के मिठाई पर बाजारवाद की लड़ाई इस रुप में सामने आयी कि गरीबों के मुंह में त्यौहार के मिठाई के मिठास कड़ुवाहट में बदलती जा रही है। रायपुर में बड़ी मात्रा में तथाकथित अवैध एवं नकली खोवा के खिलाफ व बरामदगी एवं जुर्म दर्ज हुए। यही हालात देश भर में देखने में आये। दिल्ली और उसके आसपास की घटनाओं पर स्टार न्यूज, आज तक, इंडिया टी.व्ही., भास्कर पत्र समूह, हरि भूमि, नवभारत जैसे सभी प्रमुख अखबारों एवं चैनलों में प्रमुखता के साथ गरीबों के मुंह के मिठास पर कड़वाहट घोलने जैसा कार्य किया।

इसके पीछे बाजारवाद को देखें तो हम पाते हैं कि दशहरा पर्व के तत्काल बाद दीपावली प्रारंभ होने के पूर्व कैडबरी चाकलेट में इस बार मीठा मुंह चाकलेट से कराने का नारा देकर अपना दीपावली का व्यवसाय प्रारंभ किया। कुरकुरे तथाकथित (नमकीन) भी पीछे नहीं है । दीपावली की मिठाई कुरकुरे के साथ जैसे विज्ञापनों की भरमार और समाचार पत्रों के लेख मिठाईयों पर चाकलेट भारी से ऐसा लगता है कि गरीब भारत देश के गरीब नागरिकों की मिठाई का सबसे महत्वपूर्ण तत्व दूध और उससे बने खोवा पर कहीं बाजारवाद की तथाकथित चाल पर इन मामलों को गंभीरता से उठाने वाले बुध्दिजीवी प्रशासनिक अधिकारी एवं नागरिक भी तो शिकार नहीं हो रहे हैं।

ऐसी ही घटना एक कुछ वर्षों पूर्व स्थानीय अखबार में एक सनसनी खेज मामला बनाकर सामने लायी थी जिसमें एक बड़े स्थानीय पैकेट दुग्ध ब्राण्ड में टाकसीन (जहरीले पदार्थ) पाये जाने का मामला उजागर किया था । माँ के दूध के बाद यदि शिशु जीवित रह सकता है और सारे वैज्ञानिक तथ्य इस बात को प्रमाणित करते है कि दूध में वे सभी तत्व मौजूद है जो एक स्वस्थ शिशु के लिए आवश्यक हो तो ऐसे दूध और दूध के उत्पाद के खिलाफ व्यवसायिक एवं त्यौहार के समय ही ऐसे मामलों को उठाये जाना क्या आवश्यक है ? यह हमारे लिए अवश्य सोचने का विषय हो सकता है । क्यों न ये कार्यवाहियां वर्ष भर की जाये । यदि मिलावट है तो उसे रोका जाय ।

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